August 2, 2025 2:55 PM

गंगा दशहरा: जब स्वर्ग से उतरी पापों का हरण करने वाली मां गंगा

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5 जून 2025 | विशेष आलेख | स्वदेश ज्योति

गुरुवार, 5 जून को पूरे देश में आस्था, श्रद्धा और शुद्धता का पर्व गंगा दशहरा मनाया जा रहा है। यह वह शुभ दिन है जब मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं थीं। माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से दस पापों का नाश होता है। गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारतीय जीवन में ‘मां’ के रूप में प्रतिष्ठित हैं—जो जन्म देती हैं, पोषण करती हैं और अंत में मोक्ष भी देती हैं।


गंगा की उत्पत्ति की पौराणिक कथा

गंगा की उत्पत्ति को लेकर पुराणों में अनेक रोचक कथाएं मिलती हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है।

सतयुग में असुरों के राजा बलि ने अपनी शक्ति से स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। देवताओं की माता अदिति ने यह दुख ऋषि कश्यप से साझा किया। कश्यप ने उन्हें एक व्रत बताया, जिसके फलस्वरूप अदिति के गर्भ से भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अवतार लिया।

वामन देव राजा बलि के पास पहुंचे और केवल तीन पग भूमि का दान मांगा। बलि ने अहंकारवश यह दान स्वीकार किया। लेकिन जब वामन ने विराट रूप लिया तो एक पग में पृथ्वी और दूसरे में स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर अर्पित किया।

जब वामन देव ने स्वर्ग नापा, तब उनके चरण ब्रह्मलोक तक पहुंचे। ब्रह्मा ने भगवान के चरणों को स्नान कराने के लिए अपने कमंडल से जल चढ़ाया, और यही जल बाद में गंगाजल बना। यह चरणामृत वर्षों तक ब्रह्मलोक में संचित रहा और बाद में धरती पर अवतरित हुआ।


गंगा का धरती पर अवतरण: भागीरथ की कथा

धरती पर गंगा का अवतरण एक दूसरी कथा से जुड़ा है। राजा सगर ने एक अश्वमेध यज्ञ किया, जिसका घोड़ा देवराज इंद्र ने चुरा लिया और पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम में छिपा दिया।

सगर के 60 हजार पुत्र घोड़े की तलाश में पाताल पहुंचे और कपिल मुनि की तपस्या भंग कर दी। क्रोधित होकर मुनि ने सभी पुत्रों को भस्म कर दिया।

राजा सगर के प्रपौत्र अंशुमान और फिर उनके पुत्र दिलीप ने पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाने का प्रयास किया, पर विफल रहे।

अंत में राजा भगीरथ ने कठोर तप कर पहले ब्रह्मा और फिर शिव को प्रसन्न किया। ब्रह्मा ने कहा कि गंगा का वेग इतना तीव्र होगा कि धरती उसे संभाल नहीं पाएगी। शिव ने तब गंगा को अपनी जटाओं में समेटा और बाद में सात धाराओं में बांटकर धरती पर प्रवाहित किया।

गंगा तब भगीरथ के पीछे-पीछे चलीं और जहां उनके पूर्वजों की राख थी, वहां पहुंचकर उन्होंने तर्पण कराया और उन 60 हजार आत्माओं को मुक्ति दिलाई। इसी कारण मां गंगा का एक नाम भागीरथी पड़ा।


एक और मान्यता: देवताओं के आंसुओं से बनी गंगा

एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव विष्णु की स्तुति में तल्लीन होकर भजन गा रहे थे। उनकी आंखों से आंसू बह निकले। यह देखकर अन्य देवता भी द्रवित हो उठे और उनके भी आंसू बहने लगे। इन दिव्य आंसुओं से एक पवित्र जलधारा का निर्माण हुआ, जिसे गंगा कहा गया। पहले वह स्वर्ग में बहती रहीं और बाद में भगीरथ की तपस्या से धरती पर अवतरित हुईं।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण: करोड़ों वर्ष पुरानी धारा

भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार, गंगा का उद्गम गंगोत्री ग्लेशियर से हुआ है। हिमालय की उत्पत्ति लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले टेक्टोनिक प्लेटों की टक्कर से हुई। इस क्षेत्र में बहती गंगा की स्थायी धारा करीब 15-20 मिलियन वर्ष पहले बनी। गंगा ने उत्तर भारत की विशाल मैदानी भूमि को जीवन देने का कार्य किया।


गंगा दशहरा पर क्या करें?

गंगा दशहरा के दिन गंगाजल से स्नान, दस प्रकार के दान और गंगा स्तोत्र का पाठ विशेष फलदायक माना गया है। दस दान हैं: वस्त्र, अन्न, तिल, दूध, दही, घी, गुड़, चावल, फल और जल।

इस दिन यदि गंगा स्नान संभव न हो तो घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान करें और मां गंगा की पूजा करें।


गंगा: जीवन, मोक्ष और संस्कृति का संगम

गंगा भारत की केवल भौगोलिक धरोहर नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक पहचान है। लाखों लोग इसके किनारे जन्मते और मृत्यु तक इसे नहीं छोड़ते। इसके बिना न कथा पूरी होती है, न कर्मकांड।

आज जब प्रदूषण और अतिक्रमण से मां गंगा संकट में हैं, तो यह पर्व हमें उनकी संरक्षा और स्वच्छता का संकल्प लेने का संदेश भी देता है।


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