August 2, 2025 10:00 PM

गंगा दशहरा पर काशी से संगम तक उमड़ी श्रद्धा की बाढ़, गूंज उठीं ‘हर हर गंगे’ की जयकारें

  • तीर्थ स्थलों पर भोर से ही गंगा तटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी
  • घाटों पर श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर दीपदान, मंत्रोच्चार और गंगा आरती के साथ मां गंगा की आराधना की
  • प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर भी गंगा दशहरा पर्व अत्यंत श्रद्धा और उल्लास से मनाया गया

वाराणसी/प्रयागराज। गंगा दशहरा के शुभ अवसर पर गुरुवार को उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी काशी और संगम नगरी प्रयागराज श्रद्धालु आस्था और भक्ति से सराबोर हो उठी। मान्यता है कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। इसी उपलक्ष्य में दोनों तीर्थ स्थलों पर भोर से ही गंगा तटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। काशी के दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट और अन्य प्रमुख घाटों पर श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर दीपदान, मंत्रोच्चार और गंगा आरती के साथ मां गंगा की आराधना की। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान से समस्त पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। काशी के तीर्थपुरोहित पंडित विवेकानंद के अनुसार, “यह दिन भागीरथ की तपस्या का फल है, जिन्होंने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए मां गंगा को धरती पर लाने की प्रार्थना की थी।” राजकोट से आए महंत विजय महाराज ने इसे सनातन संस्कृति का सबसे पावन पर्व बताया और कहा, “गंगा केवल नदी नहीं, वह साक्षात जीवनदायिनी देवी हैं।” इसी क्रम में प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर भी गंगा दशहरा पर्व अत्यंत श्रद्धा और उल्लास से मनाया गया। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर हजारों श्रद्धालुओं ने ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर पूजा, दान और हवन किया। संगम तट पर ‘हर हर गंगे’ के जयकारे गूंजते रहे। श्रद्धालु महंत गोपाल दास ने कहा, “गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान से केवल मनुष्य ही नहीं, उसके पितर भी तृप्त होते हैं। इसलिए यह दिन मोक्षदायिनी है।” प्रशासन ने श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के सख्त इंतजाम किए थे। एनडीआरएफ, जल पुलिस और स्वयंसेवकों की टीमें घाटों पर तैनात रहीं। घाटों की सफाई व्यवस्था भी विशेष रूप से की गई।

श्रद्धा की भव्यता और आयोजन की भव्यता

काशी की गलियों से लेकर घाटों तक आज का दिन गंगा मैया की जयकारों से गूंजता रहा। श्रद्धालु फूल, दीप और नैवेद्य लेकर घाटों पर पहुंचे। भक्ति संगीत और गंगा स्तुति ने वातावरण को पावन बना दिया। घाटों को रंग-बिरंगे फूलों और तोरणों से सजाया गया था।

धार्मिक पर्व से सामाजिक एकता तक

गंगा दशहरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का भी प्रतीक बन चुका है। लोग अपने परिवार, मित्रों और समुदाय के साथ एकत्र होकर मां गंगा की महिमा का गुणगान करते हैं। महाकुंभ के बाद अध्यात्म की ओर लोगों की रुचि और श्रद्धा और भी प्रबल हो गई है।

संगम में स्नान से लाखों पुण्य

प्रयागराज में मान्यता है कि संगम में एक रुपये का दान भी एक लाख रुपये के पुण्य फल के बराबर होता है। श्रद्धालु कहते हैं कि इस दिन का स्नान और दान उनके जीवन को धन्य बना देता है। सीता जी ने मां गंगा को ‘जगत जननी’ कहा था—और आज भी वह आस्था का वही अमृत स्रोत बनी हुई हैं।

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