July 13, 2025 10:35 AM

पुंछ में शोक के साए में पहुंचे राहुल गांधी, कहा – सीमावर्ती लोग देश की असली ताकत हैं

  • राहुल गांधी ने शोकाकुल परिवारों से मुलाकात कर उनका दुख साझा किया और भरोसा दिलाया कि कांग्रेस हर कदम पर उनके साथ खड़ी है

जम्मू। पाकिस्तान की गोलाबारी से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में शनिवार को उस समय हलचल तेज हो गई जब लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी खुद पीड़ितों से मिलने पहुंचे। चापर से सीधे पुंछ पहुंचे राहुल गांधी ने शोकाकुल परिवारों से मुलाकात कर उनका दुख साझा किया और भरोसा दिलाया कि कांग्रेस हर कदम पर उनके साथ खड़ी है।

पीड़ित परिवारों से सीधा संवाद

राहुल गांधी ने पुंछ में उन परिवारों से मुलाकात की, जिन्होंने हालिया पाकिस्तानी गोलाबारी में अपने प्रियजनों को खोया है। टूटे मकान, बिखरा सामान और आंखों में दर्द – हर दृश्य ने सीमा पर रहने वाले लोगों की दुर्दशा को उजागर किया। राहुल ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “ये देशभक्त परिवार हर बार जंग का सबसे बड़ा बोझ साहस और गरिमा से उठाते हैं। उनके हौसले को सलाम है। उनकी मांगें और मुद्दे राष्ट्रीय स्तर पर उठाए जाएंगे।”

सुरक्षा और पुनर्वास की मांगें

राहुल गांधी के दौरे के दौरान सीमावर्ती इलाकों में बंकरों के निर्माण और पहले से मौजूद बंकरों की मरम्मत की मांग उठी। इसके अलावा, प्रभावित परिवारों के लिए विशेष राहत पैकेज और पुनर्वास योजनाओं की जरूरत पर भी चर्चा हुई।

राजनीतिक संदेश भी साफ

राहुल गांधी का यह दौरा केवल सहानुभूति जताने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक सशक्त राजनीतिक संदेश भी था। पहलगाम हमले के बाद यह उनका जम्मू-कश्मीर का दूसरा दौरा है, जो बताता है कि कांग्रेस राज्य में अपनी मौजूदगी को फिर से मजबूत करने की कोशिश में है। उनके साथ कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे, जिनमें रमण भल्ला, नीरज कुंदन, डॉ. सैयद नसीर अहमद और तारिक हमीद करा प्रमुख हैं।

तीन घंटे में संवेदना, समीक्षा और रणनीति

करीब तीन घंटे तक राहुल गांधी पुंछ में रहे, जहां उन्होंने पार्टी नेताओं के साथ बैठक की और स्थानीय स्थिति की समीक्षा की। सीमांत इलाकों में लोगों की सुरक्षा को लेकर उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार से ठोस कदम उठाने की बात दोहराई। राहुल गांधी शनिवार शाम को दिल्ली लौट गए, लेकिन पुंछ की धरती पर उनके शब्द और उपस्थिति उन परिवारों के लिए एक सच्चा सहारा बनकर रह गए, जो आज भी गोलियों की गूंज में जीने को मजबूर हैं।

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