नई दिल्ली। भारत के प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से शुक्रवार को जगद्गुरु रामभद्राचार्य को सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित गरिमामय समारोह में उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया। यह पुरस्कार केवल उनकी साहित्यिक प्रतिभा का नहीं, बल्कि उनके असाधारण आत्मबल, अंतर्दृष्टि और समाज सेवा का भी सम्मान है।
राष्ट्रपति ने कहा – “शारीरिक बाधाएं, लेकिन दिव्य दृष्टि से रचना संसार को किया आलोकित”
अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य उन चुनिंदा व्यक्तित्वों में हैं जिन्होंने शारीरिक दृष्टि से बाधित होने के बावजूद साहित्य और समाज को अपनी दिव्य दृष्टि से समृद्ध किया है। वे न केवल साहित्यकार हैं, बल्कि एक दार्शनिक, वक्ता, संत और समाजसेवी के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं। राष्ट्रपति ने कहा:
“आपने अनेक क्षेत्रों में श्रेष्ठता के प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। आपकी बहुआयामी प्रतिभा आज के युवाओं के लिए आदर्श है।”
“भारतीय साहित्य की आत्मा है इसकी बहुभाषिकता”
राष्ट्रपति मुर्मु ने ज्ञानपीठ पुरस्कार की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय साहित्य की सभी भाषाओं में भारत की मिट्टी की सुगंध मौजूद है। ज्ञानपीठ केवल एक पुरस्कार नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और साहित्यिक एकता की अभिव्यक्ति है।
उन्होंने कहा कि वाल्मीकि, व्यास, कालिदास से लेकर रवींद्रनाथ टैगोर तक सभी साहित्यकारों ने भारत की धड़कन को शब्दों में उतारा है और यही भारतीय चेतना की नींव है।

चयनकर्ताओं को भी सराहना
राष्ट्रपति ने ज्ञानपीठ पुरस्कार के चयनकर्ताओं, प्रशासकों और ट्रस्ट के सदस्यों को भी धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने उत्कृष्ट साहित्यकारों का चयन करके इस पुरस्कार की गरिमा को निरंतर बनाए रखा है।
साहित्यकारों की भूमिका महानायकों जैसी
अपने वक्तव्य में राष्ट्रपति ने कहा कि 19वीं सदी के सामाजिक सुधार आंदोलन से लेकर 20वीं सदी के स्वाधीनता संग्राम तक साहित्यकारों ने जनमानस को दिशा दी। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञानपीठ 1965 से लेकर अब तक 60 से अधिक साहित्यिक विभूतियों को सम्मानित कर चुका है और यह परंपरा साहित्य के माध्यम से राष्ट्र निर्माण की मिसाल है।
महिला साहित्यकारों का योगदान भी स्मरणीय
राष्ट्रपति ने आशापूर्णा देवी, महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम, महाश्वेता देवी, इंदिरा गोस्वामी और कृष्णा सोबती जैसी ज्ञानपीठ सम्मानित महिला साहित्यकारों का भी विशेष रूप से उल्लेख किया और उनके योगदान को भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर बताया।
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