16 से 18 मई को दिल्ली-वृंदावन में राष्ट्रीय सम्मेलन, विदेशी निवेश आधारित कंपनियों की ‘आर्थिक साम्राज्यवाद’ नीति पर होगा बड़ा आंदोलन
नई दिल्ली।
देश में छोटे व्यापारियों के अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे के खिलाफ अब निर्णायक लड़ाई शुरू होने जा रही है। कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने विदेशी फंडिंग वाली ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स कंपनियों — जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट, ब्लिंकिट, स्विगी, इंस्टामार्ट, जेप्टो — की कथित अनुचित व्यावसायिक नीतियों और एफडीआई के दुरुपयोग के खिलाफ तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन की घोषणा की है। यह सम्मेलन 16 से 18 मई 2025 के बीच नई दिल्ली और वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में होगा।
तीन करोड़ किराना दुकानों का अस्तित्व संकट में
कैट के अनुसार देश की तीन करोड़ किराना दुकानों की आजीविका पर इन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की गहरी छूट, डार्क स्टोर्स और इन्वेंट्री मॉडल जैसी नीतियों से गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। नौ करोड़ से अधिक छोटे व्यापारी, जो इन दुकानों से जुड़े हैं, अब राष्ट्रव्यापी विरोध आंदोलन के लिए कमर कस चुके हैं।
सम्मेलन में तय होगी आंदोलन की रणनीति
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया ने बताया कि इस तीन दिवसीय सम्मेलन में देश भर से 100 से अधिक शीर्ष व्यापारी नेता भाग लेंगे। सम्मेलन के पहले दिन 16 मई को नई दिल्ली में एक दिवसीय राष्ट्रीय बैठक होगी, जबकि 17 और 18 मई को वृंदावन में चिंतन शिविर आयोजित किया जाएगा। इसमें आंदोलन के चरण तय किए जाएंगे, जो देश के 500 से ज्यादा शहरों में आयोजित किए जाएंगे।
गंभीर आरोप: एफडीआई का दुरुपयोग, उपभोक्ताओं से धोखा
भरतिया ने कहा कि ये कंपनियां एफडीआई का उपयोग बुनियादी ढांचा विकसित करने के बजाय भारी डिस्काउंट देने, घाटे की पूर्ति और चुनिंदा विक्रेताओं को लाभ पहुंचाने के लिए कर रही हैं।
- ये कंपनियां प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 का उल्लंघन करती हैं।
- कीमतों में हेरफेर, उपभोक्ताओं से जरूरी जानकारी छिपाना, और एकतरफा करार के ज़रिए बाजार पर कब्जा करना इनका मुख्य उद्देश्य बन चुका है।
- डिलीवरी नेटवर्क के नाम पर खुदरा दुकानों का संचालन किया जा रहा है, जो FDI नियमों के प्रत्यक्ष उल्लंघन के अंतर्गत आता है, क्योंकि कानून के तहत ई-कॉमर्स कंपनियों को इन्वेंट्री नहीं रखनी होती।

“ईस्ट इंडिया कंपनी 2.0” बन चुकी हैं ई-कॉमर्स कंपनियां
कैट प्रमुख भरतिया ने तीखा आरोप लगाते हुए कहा कि “ये कंपनियां आधुनिक युग की ईस्ट इंडिया कंपनी बन चुकी हैं। इनका उद्देश्य छोटे व्यापारियों को खत्म कर बाजार पर एकाधिकार स्थापित करना है।” कैट के चेयरमैन बृज मोहन अग्रवाल ने बताया कि इस विषय में सरकार को पहले ही एक विस्तृत श्वेत पत्र (White Paper) सौंपा जा चुका है। इसमें कानूनों के उल्लंघन के दर्जनों उदाहरण दिए गए हैं और तत्काल नियामक हस्तक्षेप की मांग की गई है।
📊 विषय का विश्लेषण: देश के खुदरा पारिस्थितिकी तंत्र पर गहराता खतरा
1. एफडीआई का असल उद्देश्य और उसका दोहन
FDI का उद्देश्य है देश में रोजगार, बुनियादी ढांचे और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना। लेकिन कैट का दावा है कि ई-कॉमर्स कंपनियों ने FDI का प्रयोग केवल डिस्काउंट और बाजार पर कब्जा करने के लिए किया, जिससे खुदरा क्षेत्र में न्यायसंगत प्रतिस्पर्धा खत्म हो रही है।
2. किराना दुकानों का सामाजिक-आर्थिक महत्व
भारत के गांवों, कस्बों और शहरी इलाकों में किराना दुकानें केवल व्यापार नहीं, जीवन रेखा हैं। ये दुकाने:
- करोड़ों लोगों को रोजगार देती हैं।
- स्थानीय अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह बनाए रखती हैं।
- सामाजिक जुड़ाव का केंद्र होती हैं।
3. डार्क स्टोर्स: सुविधा या खतरा?
डार्क स्टोर्स यानी गोदाम-जैसी दुकानें जो ऑनलाइन ऑर्डर पूरे करती हैं। इनका कोई आम ग्राहक नहीं होता, लेकिन स्थानीय बाजार से प्रतिस्पर्धा करती हैं। ये मूल्य निर्धारण को नियंत्रित करती हैं और किराना व्यापारियों की बिक्री घटा देती हैं।
4. क्या सरकार हस्तक्षेप करेगी?
सरकार अभी तक “ई-कॉमर्स नीति” को लेकर स्पष्ट नहीं है। हाल के वर्षों में कई प्रयास हुए, लेकिन नियमन और निगरानी की स्पष्ट रूपरेखा अब तक नहीं बनी। यदि व्यापारी आंदोलन तेज होता है, तो सरकार पर नीति-संशोधन और कड़े कानून लाने का दबाव बढ़ सकता है।
आगे क्या?
- 16-18 मई का सम्मेलन भारत में ई-कॉमर्स बनाम ट्रेडर्स संघर्ष की दिशा तय करेगा।
- यदि कोई समाधान नहीं निकला, तो देशव्यापी आंदोलन और राजनीतिक दबाव तय माने जा रहे हैं।
- सवाल यह है कि क्या भारत में “डिजिटल व्यापार” की आड़ में छोटे व्यापारियों को कुचलने की इजाजत दी जाएगी?
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