पिछले महीने अप्रैल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी में आयोजित एक ओपन पब्लिक इवेंट में शामिल हुए थे। इस कार्यक्रम के दौरान एक सिख युवक ने उनसे कुछ तीखे और गंभीर सवाल पूछे, जो देश की राजनीति और इतिहास से जुड़े थे।
सिख युवक का सवाल: “हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी चाहिए, जो कांग्रेस राज में नहीं थी”
कार्यक्रम में मौजूद इस युवक ने राहुल गांधी को उनके पुराने बयानों की याद दिलाते हुए कहा कि वे सिखों की बात तो करते हैं, लेकिन ऐसा माहौल बनाते हैं जैसे सिखों को बीजेपी से डरना चाहिए। युवक का कहना था कि असल में सिख किसी से नहीं डरते, लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी की ज़रूरत उन्हें कांग्रेस के शासनकाल में भी महसूस हुई थी, जब वह नहीं थी।
आनंदपुर साहिब रेजोल्यूशन और 1984 दंगे
सवालों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। सिख युवक ने आनंदपुर साहिब रेजोल्यूशन का मुद्दा भी उठाया और कहा कि यह दस्तावेज़ दलितों और वंचितों के अधिकारों की बात करता है, लेकिन कांग्रेस ने उसे “अलगाववादी दस्तावेज” बताकर नकारात्मक रूप में प्रचारित किया।
इसके अलावा युवक ने 1984 के सिख विरोधी दंगों का भी जिक्र किया। उसने कहा कि भले ही अदालत ने सज्जन कुमार जैसे नेताओं को दोषी ठहराया हो, लेकिन आज भी कांग्रेस पार्टी में वैसे ही कई चेहरे मौजूद हैं जो उस दौर की हिंसा से जुड़े हुए हैं।
राहुल गांधी का जवाब: “1980 के दशक में जो हुआ, वह गलत था”
इस पर राहुल गांधी ने शांतिपूर्वक जवाब देते हुए कहा, “मुझे नहीं लगता कि सिख किसी चीज से डरते हैं।” उन्होंने स्वीकार किया कि 1980 के दशक में जो कुछ भी हुआ, वह गलत था। राहुल गांधी ने साफ कहा कि उन घटनाओं के वक्त वे राजनीति में नहीं थे, लेकिन वे कांग्रेस के इतिहास की गलतियों की जवाबदेही लेने के लिए तैयार हैं।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने उस दौर में जो भी ग़लतियाँ कीं, उन्हें स्वीकार करना चाहिए और उससे सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
ब्राउन यूनिवर्सिटी में हुआ यह संवाद एक उदाहरण है कि भारत के युवा आज राजनीतिक नेताओं से सीधे, कठिन और ईमानदार जवाब मांगते हैं। राहुल गांधी का यह जवाब उनके आलोचकों को पूरी तरह संतुष्ट करे या न करे, लेकिन यह ज़रूर दिखाता है कि वे अतीत की जिम्मेदारी लेने से कतराते नहीं हैं। यह घटना एक और संकेत है कि भारत की राजनीति में अब संवाद और आत्ममंथन की मांग बढ़ रही है।
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