30 अप्रैल को परशुराम जयंती: क्यों मनाई जाती है, क्या है पौराणिक महत्व, और कर्ण से जुड़ी एक सीख
हर वर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया को भगवान परशुराम जयंती मनाई जाती है। यही तिथि अक्षय तृतीया के रूप में भी जानी जाती है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार सबसे शुभ दिनों में से एक मानी जाती है। परशुराम जयंती पर भगवान विष्णु के छठे अवतार का स्मरण किया जाता है, जो धर्म की रक्षा और अन्याय के विनाश के लिए इस धरती पर अवतरित हुए थे। लेकिन परशुराम का जीवन केवल युद्ध और शस्त्रों की बात नहीं करता, बल्कि यह हमें धैर्य, तप, न्याय और सच्चाई की अद्भुत मिसाल भी देता है।
🔱 भगवान परशुराम का पौराणिक स्वरूप
परशुराम, जिनका जन्म महार्षि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था, को क्रोध के देवता, शस्त्रों के गुरू और ब्राह्मणों में क्षत्रिय वृत्ति का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने 21 बार पृथ्वी से अन्यायी क्षत्रियों का संहार किया था। उनके हाथ में फरसा (पараशु) होता था, जिसे उन्होंने स्वयं भगवान शिव से प्राप्त किया था। यही कारण है कि उनका नाम “परशुराम” पड़ा।
📖 कर्ण और परशुराम की कथा: झूठ और ज्ञान की मर्यादा
इस जयंती पर एक कथा विशेष रूप से स्मरण की जाती है—महाभारत काल से जुड़ी कर्ण और परशुराम की कथा।
कर्ण, जो कि सूर्यपुत्र थे पर सूतपुत्र कहलाए, महान योद्धा बनना चाहते थे। लेकिन उस समय केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय ही अस्त्र-शस्त्र की विद्या प्राप्त कर सकते थे। परशुराम सिर्फ ब्राह्मणों को यह ज्ञान देते थे, इसलिए कर्ण ने उनसे झूठ बोला कि वह ब्राह्मण है।
कर्ण ने निष्ठा और समर्पण से विद्या प्राप्त की, लेकिन एक दिन जब परशुराम थके होकर कर्ण की जांघ पर सिर रखकर सो गए, तभी एक कीड़े ने कर्ण की जांघ पर काट लिया। दर्द असहनीय था, लेकिन कर्ण ने गुरु की नींद में विघ्न न डाले, इसलिए वह हिला तक नहीं।
जब रक्त की धार से परशुराम जागे, तो उन्हें समझ आ गया कि इतना सहनशील कोई ब्राह्मण नहीं हो सकता। उन्होंने कर्ण से सच्चाई पूछी, और जब कर्ण ने झूठ स्वीकार किया, तो परशुराम ने उसे शाप दे दिया:
“जब तुझे सबसे ज़्यादा अपनी विद्या की ज़रूरत होगी, तब तू उसे भूल जाएगा।”
यही शाप महाभारत युद्ध के निर्णायक क्षण में कर्ण की पराजय का कारण बना।
क्यों मनाते हैं परशुराम जयंती?
- धर्म की रक्षा: परशुराम जी का अवतरण अधर्म के विनाश और ब्राह्मण धर्म की रक्षा के लिए हुआ था।
- न्याय का प्रतीक: वे हमें सिखाते हैं कि अन्याय के विरुद्ध उठ खड़ा होना भी धर्म है।
- शस्त्र और शास्त्र दोनों का संतुलन: उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि ब्रह्मतेज और क्षात्रतेज दोनों मिलें तो राष्ट्र और धर्म की रक्षा संभव होती है।
🌼 परशुराम जयंती कैसे मनाई जाती है?
- पूजन और हवन: इस दिन विशेष रूप से भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है।
- ब्रह्मणों को दान: धर्म के अनुरूप ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान किया जाता है।
- संस्कार और उपदेश: विद्यालयों, मंदिरों और आश्रमों में भगवान परशुराम के जीवन से जुड़ी कथाएं सुनाई जाती हैं और उनके आदर्शों की चर्चा होती है।
- युवाओं में प्रेरणा: युवा वर्ग को परशुराम की तरह साहसी, सत्यवादी और अनुशासित बनने की प्रेरणा दी जाती है।
✨ इस कथा से क्या सीख मिलती है?
- झूठ के सहारे मिला ज्ञान देर-सवेर अपना प्रभाव खो देता है।
- गुरु और शिष्य के संबंध में ईमानदारी और सत्य सबसे बड़ा आधार होता है।
- श्रेष्ठ बनने की चाह अच्छी है, लेकिन उसका मार्ग सच्चा और नैतिक होना चाहिए।
- भगवान परशुराम सिखाते हैं कि साहस और संयम, दोनों जीवन में जरूरी हैं।
इस परशुराम जयंती पर आइए, सिर्फ पूजा में न सिमटकर, उनके जीवन से मिल रही शिक्षाओं को भी आत्मसात करें। सत्य, अनुशासन और धर्म की राह पर चलें—यही उनकी सच्ची आराधना है।
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