July 4, 2025 1:11 PM

भारत ने फिर दिखाई अंतरिक्ष में अपनी ताकत, इसरो ने दूसरी बार दो सैटेलाइट्स की सक्सेसफुल डॉकिंग की

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नई दिल्ली: भारत ने एक बार फिर अंतरिक्ष में अपनी ताकत को साबित करते हुए, इसरो ने दो सैटेलाइट्स की सक्सेसफुल डॉकिंग की है। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने सोमवार को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करके इस सफलता की जानकारी दी। इसरो की यह उपलब्धि भारत की स्पेस टेक्नोलॉजी में स्वदेशी क्षमताओं का एक अहम उदाहरण बनकर उभरी है। इस डॉकिंग के बाद, आने वाले दो हफ्तों में और वैज्ञानिक प्रयोग किए जाने की योजना है, जिससे भारत की अंतरिक्ष में शोध और विकास की दिशा को और भी मजबूती मिलेगी।

डॉकिंग का ऐतिहासिक क्षण और भारत की सफलता

भारत ने 16 फरवरी 2024 को अंतरिक्ष में दो सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक डॉक करने के साथ, इस सफलता को हासिल करने वाला चौथा देश बन गया है। इससे पहले, रूस, अमेरिका और चीन ही इस तरह की सफलता प्राप्त कर पाए थे। भारत का यह मिशन चंद्रयान-4, गगनयान, और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे मिशनों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिनकी सफलता के लिए डॉकिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा।

मूल मिशन की प्रगति और तकनीकी चुनौतियाँ

भारत ने 30 दिसंबर 2024 को पीएसएलवी-सी60 / स्पेडेक्स मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था, और 16 जनवरी को पहली बार इन दो सैटेलाइट्स की डॉकिंग हुई थी। 13 मार्च को सफलतापूर्वक इन्हें अनडॉक भी किया गया। हालांकि, शुरुआत में 7 जनवरी और 9 जनवरी को तकनीकी कारणों के चलते डॉकिंग प्रक्रिया टल गई थी, लेकिन इस बार भारत ने बिना किसी समस्या के दोनों सैटेलाइट्स को सटीकता के साथ जोड़ने में सफलता हासिल की।

डॉकिंग और अनडॉकिंग की प्रक्रिया

स्पेसक्राफ्ट्स के बीच की दूरी को पहले 15 मीटर से घटाकर 3 मीटर तक लाया गया, और इसके बाद, डॉकिंग प्रक्रिया को बेहद सटीकता के साथ पूरा किया गया। इस प्रक्रिया के दौरान, डॉकिंग के लिए लेजर रेंज फाइंडर और डॉकिंग कैमरों का इस्तेमाल किया गया, जो इसे सटीकता से पूरा करने में सहायक बने। डॉकिंग के बाद, दोनों सैटेलाइट्स को एकसाथ नियंत्रित किया गया, और इस सफलता के बाद, इनकी इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसफर करने की प्रक्रिया को भी परीक्षण किया जाएगा।

भारत की अंतरिक्ष मिशन के लिए आगामी योजनाएँ

डॉकिंग के बाद, दोनों स्पेसक्राफ्ट्स अपने-अपने पेलोड के ऑपरेशन को शुरू करेंगे, और अगले दो साल तक इनसे वैल्युएबल डेटा प्राप्त होगा। इस मिशन के दौरान भेजे गए 24 पेलोड्स में से 14 पेलोड इसरो के थे और 10 पेलोड गैर-सरकारी संस्थाओं से थे। यह डेटा विशेष रूप से माइक्रोग्रेविटी में एक्सपेरिमेंट के लिए महत्वपूर्ण होगा।

इसके अलावा, चंद्रयान-4 और गगनयान मिशन जैसे भविष्य के महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अभियानों के लिए इस डॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा से सैंपल पृथ्वी पर लाए जाएंगे, और गगनयान मिशन में मानव को अंतरिक्ष में भेजने का प्रयास किया जाएगा।

भारत का डॉकिंग मैकेनिज्म और पेटेंट प्राप्ति

इस डॉकिंग मैकेनिज्म को भारतीय डॉकिंग सिस्टम नाम दिया गया है, और इसरो ने इस पर पेटेंट भी ले लिया है। यह महत्वपूर्ण था क्योंकि कोई अन्य स्पेस एजेंसी इस अत्यंत जटिल प्रक्रिया की बारीकियों को साझा नहीं करती है। भारत को अपनी खुद की डॉकिंग तकनीक विकसित करनी पड़ी, जिससे यह सुनिश्चित किया गया कि भारतीय अंतरिक्ष मिशन पूरी तरह से स्वदेशी और आत्मनिर्भर हों।

भारत की अंतरिक्ष कूटनीति में एक महत्वपूर्ण कदम

यह सफलता भारत के अंतरिक्ष कूटनीतिक दृष्टिकोण को भी दर्शाती है। भारत अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को और बढ़ा रहा है, और इस तरह के मिशन से उसकी वैश्विक भूमिका मजबूत हो रही है। आने वाले समय में, भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में और भी महत्वपूर्ण तकनीकी उन्नति करेगा, जो न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए भी महत्वपूर्ण रहेगा।

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