नई दिल्ली।
वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के दूरस्थ और दुर्गम इलाकों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति के प्रमाण खोजे हैं, जो पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा साबित हो सकता है। ये अत्यंत छोटे प्लास्टिक कण, जिनका आकार पांच मिलीमीटर से भी कम होता है, अब दुनिया के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच चुके हैं। इसका अर्थ है कि पृथ्वी पर कोई भी स्थान प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभाव से अछूता नहीं रह गया है।
वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के एल्सवर्थ पर्वत के निकट यूनियन और शैन्ज ग्लेशियर के अनुसंधान शिविरों तथा अमेरिकी अंटार्कटिक कार्यक्रम के शोध केंद्र के आसपास की बर्फ का विश्लेषण किया। इस अध्ययन के निष्कर्ष प्रतिष्ठित जर्नल ‘साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट’ में प्रकाशित हुए हैं।
कैसे पहुंचा माइक्रोप्लास्टिक अंटार्कटिका?
वैज्ञानिक अभी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि ये माइक्रोप्लास्टिक कण अंटार्कटिका तक कैसे पहुंचे और यह वहां के पर्यावरण को कैसे प्रभावित कर रहे हैं। कुछ शोधों के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक बर्फ की परावर्तक क्षमता (Albedo Effect) को कम कर सकते हैं, जिससे बर्फ तेजी से पिघल सकती है।
इसके अलावा, ये माइक्रोकण पारिस्थितिकी तंत्र में घुलकर समुद्री जीवों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। अंटार्कटिका में मौजूद सील, पेंगुइन, मछलियां और अन्य समुद्री जीव पहले से ही माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आ चुके हैं।
19 स्थानों से बर्फ के नमूने लिए गए, सभी में मिला माइक्रोप्लास्टिक
न्यूजीलैंड के कैंटरबरी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में अंटार्कटिका के 19 विभिन्न स्थानों से बर्फ के नमूने लिए गए। चौंकाने वाली बात यह रही कि सभी नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई।
इनमें 13 विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक मिले, जिनमें सबसे आम था पीईटी (पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट), जिसका उपयोग आमतौर पर प्लास्टिक बोतलों और पैकेजिंग सामग्री में किया जाता है।
मुख्य खोजें:
- हर सैंपल में माइक्रोप्लास्टिक मिला
- 13 अलग-अलग प्रकार के प्लास्टिक कण मौजूद थे
- सबसे आम प्लास्टिक PET (पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट) था
यह खोज न केवल अंटार्कटिका के लिए बल्कि संपूर्ण पर्यावरण, समुद्री जीवों और मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरे का संकेत देती है।
अब 100 गुना अधिक बारीक माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाया जा सकता है
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे की वैज्ञानिक डॉ. एमिली रोलैंड्स के अनुसार, नई तकनीकों के माध्यम से अब पहले की तुलना में 100 गुना अधिक बारीक माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा,
“यह शोध स्पष्ट रूप से दिखाता है कि प्लास्टिक प्रदूषण अब पूरी पृथ्वी पर फैल चुका है। इससे निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।”
माइक्रोप्लास्टिक के खतरे:
- ग्लेशियर तेजी से पिघल सकते हैं – माइक्रोप्लास्टिक बर्फ की परावर्तन क्षमता कम करता है, जिससे गर्मी अधिक अवशोषित होती है और बर्फ पिघलने की गति बढ़ जाती है।
- समुद्री जीवों को नुकसान – माइक्रोप्लास्टिक समुद्र में घुलकर खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर रहा है, जिससे समुद्री जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
- मानव स्वास्थ्य पर असर – शोध बताते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक पीने के पानी और खाद्य पदार्थों में भी मिल चुका है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
- कार्बन संतुलन पर प्रभाव – समुद्र में कार्बन के संचरण (Carbon Cycle) को बाधित कर सकता है, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या और बढ़ सकती है।
क्या समाधान है?
वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का मानना है कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। प्लास्टिक का उपयोग कम करना, रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना, और प्लास्टिक के विकल्प तलाशना इसके प्रभाव को सीमित करने के कुछ महत्वपूर्ण उपाय हो सकते हैं।
अंटार्कटिका में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति ने यह साफ कर दिया है कि अब कोई भी जगह इस प्रदूषण से अछूती नहीं रही। यह एक वैश्विक संकट बन चुका है, जिससे निपटने के लिए विश्व स्तर पर सख्त नीतियों की आवश्यकता है।