हालात: दुनिया में 6.18 करोड़ लोग ऑटिज्म से पीड़ित, पुरुषों में दोगुने मामले; वातावरण और जीवनशैली जैसे कारक जिम्मेदार
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक मानसिक विकार है, जिसमें प्रभावित व्यक्ति न तो दूसरों की बातों को समझ पाता है और न ही स्वयं को ठीक से अभिव्यक्त कर पाता है। यह समस्या दुनिया भर में 6.18 करोड़ लोगों को प्रभावित करती है, जो धरती के हर 127वें इंसान को प्रभावित करती है। इनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। यह विकार आमतौर पर 12-18 महीनों की उम्र में बच्चों में दिखाई देने लगता है और जीवनभर उनके विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है।
वैश्विक आंकड़े और डेटा
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2021 पर आधारित एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया कि 2021 तक दुनिया भर में 6.18 करोड़ लोग ऑटिज्म से पीड़ित थे। इस आंकड़े के मुताबिक, पुरुषों में इस विकार के मामलों की संख्या महिलाओं के मुकाबले दोगुनी है।
- प्रति एक लाख पुरुषों में ऑटिज्म के 1,065 मामले
- प्रति एक लाख महिलाओं में ऑटिज्म के 508 मामले
यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट साइकियाट्री में प्रकाशित हुआ है और इसके नतीजे से यह स्पष्ट होता है कि ऑटिज्म बच्चों और किशोरों में 10 सबसे गैर-घातक चुनौतियों में शामिल है। हालांकि, यह विकार जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक समस्याएं शामिल हैं।
ऑटिज्म के प्रभाव
ऑटिज्म से पीड़ित व्यक्ति के जीवन में कई पहलुओं में असंतुलन पैदा होता है। इनमें शामिल हैं:
- आहार: ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे सही तरीके से आहार को पचाने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं।
- व्यायाम: शारीरिक गतिविधि में कमी के कारण शारीरिक विकास और समन्वय में समस्या हो सकती है।
- निद्रा: ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को सामान्य निद्रा में समस्याएं हो सकती हैं।
- तनाव और अवसाद: सामाजिक असमर्थता और समझ की कमी के कारण मानसिक तनाव और अवसाद की समस्या हो सकती है।
- प्राकृतिक वातावरण और जीवनशैली: पर्यावरणीय कारक जैसे प्रदूषण और जीवनशैली भी इसके जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारण
ऑटिज्म के एक से अधिक कारण हो सकते हैं, जिनमें आनुवंशिक और पर्यावरणीय दोनों प्रकार के कारक शामिल होते हैं। कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
- आनुवंशिक: अगर किसी बच्चे के माता-पिता में से कोई एक ऑटिज्म से प्रभावित है, तो बच्चे में भी इसकी संभावना बढ़ जाती है।
- जुड़वां बच्चों में अधिक दर: जुड़वां बच्चों में ऑटिज्म होने की संभावना अन्य बच्चों की तुलना में अधिक होती है।
- गर्भावस्था के दौरान संक्रमण: गर्भावस्था में मां को संक्रमण या तनाव होना बच्चे के ऑटिज्म का खतरा बढ़ा सकता है।
- समय से पहले या छोटे आकार में जन्म: समय से पहले या सामान्य आकार से छोटे बच्चे का जन्म भी ऑटिज्म के जोखिम कारक हो सकता है।
- मातृ दवाइयां और पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थ: कुछ दवाइयां और विषाक्त पदार्थों का सेवन भी इस विकार के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
लक्षण और शुरुआती संकेत
ऑटिज्म के लक्षण आमतौर पर 12-18 महीनों की आयु में या इससे पहले भी दिखने लगते हैं। ये लक्षण हल्के से लेकर गंभीर हो सकते हैं और जीवनभर व्यक्ति के साथ रह सकते हैं। नवजात शिशु में ऑटिज्म के कुछ सामान्य संकेत हैं:
- बोलने में समस्या: बच्चे इक्का-दुक्का शब्द बार-बार बोलते हैं या बड़बड़ाते हैं।
- सामाजिक असमर्थता: वे दूसरों के साथ आंखों में आंखें मिलाकर नहीं देख सकते या आई-कॉन्टैक्ट नहीं बनाते।
- मां की आवाज की अनदेखी: बच्चे अपनी मां की आवाज को अनसुना करते हैं।
- विशेष चीजों में रुचि: वे किसी विशेष वस्तु की ओर बार-बार इशारा करते हैं या उसे घुमाते हैं।
- हाथों के बल चलना: कुछ बच्चे सामान्य तरीके से चलने के बजाय हाथों के बल चलते हैं।
ऑटिज्म के निदान और उपचार
ऑटिज्म का कोई विशेष उपचार नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न उपचार उपलब्ध हैं। इसका उपचार चिकित्सा, व्यवहारिक थेरेपी और विशेष शिक्षा के माध्यम से किया जा सकता है। हर बच्चे के लिए उपचार का तरीका अलग हो सकता है और इसके लिए विशेषज्ञों से सलाह लेना जरूरी होता है।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक जटिल मानसिक विकार है, जो जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करता है। इसके लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है, लेकिन आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि इसे समय रहते पहचान लिया जाए, तो इसकी समस्याओं को कम किया जा सकता है और प्रभावित बच्चों को बेहतर जीवन जीने में मदद मिल सकती है।