- बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया
- अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इन आरोपियों के खिलाफ पुख्ता और निर्णायक सबूत पेश करने में नाकाम रहा
मुंबई। मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए 2006 के सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इन आरोपियों के खिलाफ पुख्ता और निर्णायक सबूत पेश करने में नाकाम रहा। यह फैसला घटना के 19 वर्ष बाद सुनाया गया है। जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांडक की विशेष खंडपीठ ने कहा कि प्रस्तुत किए गए साक्ष्य आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अदालत ने इस बात को स्पष्ट किया कि जिन आधारों पर निचली अदालत ने दोष सिद्ध किया था, वे न्यायसंगत और मजबूत नहीं थे।
क्या हुआ था 11 जुलाई 2006 को?
मुंबई में 11 जुलाई 2006 को शाम 6:24 से 6:35 बजे के बीच पश्चिम रेलवे की लोकल ट्रेनों के फर्स्ट क्लास डिब्बों में एक के बाद एक सात धमाके हुए थे। ये धमाके खार, बांद्रा, जोगेश्वरी, माहिम, बोरीवली, माटुंगा और मीरा-भायंदर स्टेशनों के पास हुए थे। इन विस्फोटों में 189 लोगों की मौत हो गई थी और 824 लोग घायल हो गए थे।

कैसे किए गए थे धमाके?
जांच एजेंसियों के मुताबिक धमाकों में आरडीएक्स, अमोनियम नाइट्रेट, फ्यूल ऑयल और लोहे की कीलों से बनाए गए बमों का इस्तेमाल किया गया था। इन्हें सात प्रेशर कुकरों में रखकर टाइमर के जरिए ब्लास्ट किया गया था।
आरोपियों के नाम और पृष्ठभूमि
इस मामले में जिन 12 भारतीय नागरिकों को आरोपी बनाया गया था, उनके नाम इस प्रकार हैं:
- कमाल अहमद अंसारी
- तनवीर अहमद अंसारी
- मोहम्मद फैजल शेख
- एहतेशाम सिद्दीकी
- मोहम्मद माजिद शफी
- शेख आलम शेख
- मोहम्मद साजिद अंसारी
- मुजम्मिल शेख
- सोहेल मेहमूद शेख
- जामिर अहमद शेख
- नावीद हुसैन खान
- आसिफ खान
पाकिस्तान कनेक्शन और पुलिस का दावा
पुलिस ने दावा किया था कि इस हमले की साजिश लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी आजम चीमा ने रची थी। मार्च 2006 में बहावलपुर (पाकिस्तान) में सिमी और लश्कर के कुछ गुटों के साथ मिलकर हमला करने की योजना बनाई गई थी। मई 2006 में युवकों को प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान भेजा गया। पुलिस ने जांच के दौरान 13 पाकिस्तानी नागरिकों की पहचान भी इस हमले में आरोपी के तौर पर की थी।

मकोका कोर्ट का फैसला और हाईकोर्ट की कार्यवाही
एटीएस ने जुलाई से अक्टूबर 2006 के बीच 12 भारतीय आरोपियों को गिरफ्तार किया। नवंबर 2006 में आरोपियों ने अदालत में शिकायत की कि उनसे जबरन इकबालिया बयान लिए गए। स्पेशल मकोका कोर्ट ने 2015 में पांच आरोपियों को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। एक आरोपी को बरी किया गया था। इसके बाद 2016 में सभी दोषियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट में 2019 से सुनवाई शुरू हुई, जो कई चरणों में 2025 तक चली। अंततः न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं और सभी 12 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
