संगीत की दुनिया के चमकते सितारे और महान तबला वादक पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन का सोमवार सुबह अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में निधन हो गया। 73 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उस्ताद जाकिर हुसैन को रविवार रात रक्तचाप संबंधी समस्या के कारण अमेरिका के एक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। परिवार के प्रतिनिधि प्रॉस्पेक्ट पीआर के जॉन ब्लेचर ने उनके निधन की पुष्टि की।
तबले की थाप से विश्वभर में बनाई पहचान
उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को हुआ था। वे मशहूर तबला वादक और संगीतकार उस्ताद अल्ला रक्खा खां के पुत्र थे। पिता से ही उन्होंने तबले की प्रारंभिक शिक्षा ली और अपने पहले गुरू के रूप में उन्हें हमेशा याद किया। महज 11 साल की उम्र में उन्होंने अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट किया। तबले के प्रति उनकी लगन और समर्पण ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई।
62 सालों तक संगीत और तबले का साथ निभाने वाले जाकिर हुसैन ने अपनी कला से विश्व मंच पर भारत का नाम रौशन किया। उन्होंने न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया, बल्कि तबले को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाई।
पुरस्कार और सम्मान
उस्ताद जाकिर हुसैन को उनकी अद्वितीय कला और योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
- उन्होंने तीन बार ग्रैमी अवॉर्ड जीता।
- भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और फिर पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
- वे कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके थे।
संगीत की दुनिया में अपूरणीय क्षति
उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन की खबर से संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने भारतीय और पश्चिमी संगीत के संगम से नई धुनें तैयार कीं और संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया। उनके निधन से भारतीय संगीत ने एक महान कलाकार खो दिया है।
उनका जाना भारतीय संगीत और तबले के लिए एक युग के अंत जैसा है। संगीत के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
उनकी आत्मा की शांति के लिए सभी प्रार्थना कर रहे हैं।