एक देश-एक चुनाव बिल कैबिनेट से मंजूर: अगले हफ्ते संसद में पेश होगा, 2029 तक देशभर में एक साथ चुनाव कराने की योजना
केंद्र सरकार ने बहुप्रतीक्षित ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) विधेयक को कैबिनेट से मंजूरी दे दी है। इस कदम को भारतीय लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक पहल बताया जा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, यह बिल अगले हफ्ते संसद के विशेष सत्र में पेश किया जाएगा। अगर यह विधेयक पास हो जाता है, तो 2029 तक देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकेंगे।
क्या है ‘एक देश-एक चुनाव’ का मकसद?
‘एक देश-एक चुनाव’ का मुख्य उद्देश्य देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है। इसका मकसद चुनावी प्रक्रिया में समय और धन की बचत करना है। फिलहाल भारत में हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं, जिससे प्रशासन, विकास कार्यों और सरकारी खर्च पर प्रभाव पड़ता है।
सरकार का मानना है कि इस प्रणाली से चुनावों की प्रक्रिया सरल होगी और बार-बार चुनावों के कारण होने वाले व्यवधानों से बचा जा सकेगा।
कैबिनेट की बैठक में मंजूरी
सूत्रों के अनुसार, हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस बिल को मंजूरी दी गई। इसके बाद सरकार इसे संसद में पेश करने की तैयारी कर रही है। इस बिल के पारित होने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, क्योंकि मौजूदा कानून लोकसभा और विधानसभा चुनावों को अलग-अलग समय पर कराने की अनुमति देता है।
बिल का संसद में पेश होना
सरकार इस विधेयक को संसद के आगामी विशेष सत्र में पेश करेगी। इस पर संसद में व्यापक चर्चा होने की संभावना है। इसके पास होने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही, इसे कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी भी चाहिए होगी।
बिल के पास होने पर क्या होगा बदलाव?
यदि ‘एक देश-एक चुनाव’ विधेयक पारित हो जाता है, तो भारत में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर कराए जाएंगे। इसके लिए मौजूदा चुनावी प्रणाली में बड़े बदलाव किए जाएंगे। 2029 तक इसे लागू करने की योजना है, ताकि उस समय लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें।
फायदे और चुनौतियां
फायदे:
- वित्तीय बचत: बार-बार चुनावों पर खर्च होने वाले करोड़ों रुपये की बचत होगी।
- प्रशासनिक सुविधा: चुनाव आयोग और सरकारी मशीनरी पर पड़ने वाला दबाव कम होगा।
- विकास पर ध्यान: लगातार चुनावों के कारण विकास कार्यों में होने वाले व्यवधान से बचा जा सकेगा।
चुनौतियां:
- संविधान संशोधन के लिए व्यापक राजनीतिक सहमति की आवश्यकता होगी।
- राज्यों के अलग-अलग चुनावी चक्र को एक साथ लाना एक जटिल प्रक्रिया है।
- इस प्रणाली के क्रियान्वयन के लिए भारी लॉजिस्टिक तैयारी की जरूरत होगी।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
हालांकि सरकार इस विधेयक को ऐतिहासिक कदम बता रही है, लेकिन विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाए हैं। कई दलों का मानना है कि यह संघीय ढांचे पर असर डाल सकता है। उनका कहना है कि यह केंद्र सरकार की सत्ता को और मजबूत कर सकता है और राज्यों की स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है।
जनता की उम्मीदें
‘एक देश-एक चुनाव’ की चर्चा लंबे समय से चल रही है, और जनता के बीच इसे लेकर उत्साह और जिज्ञासा है। यदि यह बिल पारित हो जाता है, तो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह एक बड़ा बदलाव होगा।
‘एक देश-एक चुनाव’ विधेयक भारतीय चुनाव प्रणाली में एक नया अध्याय जोड़ सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इसे संसद में कितनी सहमति मिलती है और इसका क्रियान्वयन किस तरह से किया जाएगा।