- श्री जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार (खजाने) की मरम्मत का कार्य पूर्ण हो चुका
- चांदी और अन्य बहुमूल्य रत्नों की गिनती राज्य सरकार की मंजूरी के बाद की जाएगी
भुवनेश्वर। पुरी स्थित 12वीं सदी के श्री जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार (खजाने) की मरम्मत का कार्य पूर्ण हो चुका है। अब इसमें रखे सोना, चांदी और अन्य बहुमूल्य रत्नों की गिनती राज्य सरकार की मंजूरी के बाद की जाएगी। यह जानकारी सोमवार को श्री जगन्नाथ मंदिर के मुख्य प्रशासक अरबिंद पधी और भारतीय पुरातत्व संस्थान (ASI) के प्रमुख पुरातत्ववेत्ता डीबी गरनायक ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी।
95 दिन में हुआ जीर्णोद्धार, 80 विशेषज्ञों की टीम ने निभाई जिम्मेदारी
पुरातत्व संस्थान ने रत्न भंडार के आंतरिक और बाहरी कक्षों की मरम्मत 95 दिनों में पूरी की। मंदिर प्रशासन के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की पूजा और त्योहारों में प्रयुक्त होने वाले रत्नों को बाहरी कक्ष में रखा जाता है, जबकि महंगे हीरे-जवाहरात और स्वर्णाभूषण अंदरूनी कक्ष में रखे जाते हैं। प्रशासक पधी ने बताया कि इस कार्य में करीब 80 विशेषज्ञों की टीम ने हिस्सा लिया और मरम्मत कार्य को पारंपरिक तकनीकों से पूरा किया गया। यह कार्य भगवान के नीलाद्रि बिजे अनुष्ठान (रथ यात्रा के बाद देवताओं की वापसी) से पहले सम्पन्न किया गया।
46 वर्षों बाद खोला गया अंदरूनी चैंबर, 1978 की सूची के अनुसार 128 किलो सोना
पिछले साल जुलाई 2024 में मंदिर के अंदरूनी कक्ष को 46 साल बाद खोला गया था। वर्ष 1978 की सूची के अनुसार, रत्न भंडार में 128 किलोग्राम सोना और 200 किलोग्राम से अधिक चांदी दर्ज है। उस समय कई आभूषणों पर सोने की परत थी, जिनका अलग से वजन नहीं किया गया था। पिछले साल जब रत्न भंडार को खोला गया, तो आभूषणों को दो चरणों में अस्थायी स्ट्रॉन्ग रूम में स्थानांतरित किया गया था। मरम्मत कार्य के पूर्ण होते ही इन्हें फिर से रत्न भंडार में स्थानांतरित किया जाएगा।
520 पत्थर ब्लॉक और 15 बीम बदले गए, ग्रेनाइट फर्श लगाया गया
ASI के डीबी गरनायक ने बताया कि जीर्णोद्धार कार्य के दौरान 520 क्षतिग्रस्त पत्थर ब्लॉक बदले गए, और फर्श को ग्रेनाइट पत्थरों से तैयार किया गया। साथ ही, संरचना की मजबूती के लिए 15 पुरानी बीमों को स्टेनलेस स्टील बीमों से बदला गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पूरा कार्य पारंपरिक सूखी चिनाई पद्धति (dry masonry technique) के तहत किया गया, जिससे मंदिर की ऐतिहासिक संरचना और वास्तुकला को कोई क्षति न पहुंचे।