July 31, 2025 10:50 PM

पति की दीर्घायु और सौभाग्य के लिए रखा जाएगा वट सावित्री व्रत, 26 मई को पूजन का शुभ मुहूर्त

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भोपाल, 25 मई।
26 मई 2025 को पूरे उत्तर भारत में पारंपरिक श्रद्धा और आस्था के साथ वट सावित्री व्रत मनाया जाएगा। यह व्रत हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत पूजनीय और शुभ माना जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र, वैवाहिक सुख और अखंड सौभाग्य के लिए वटवृक्ष की पूजा करती हैं।

वट सावित्री व्रत का धार्मिक महत्व

वट सावित्री व्रत का संबंध पौराणिक कथा ‘सावित्री और सत्यवान’ से जुड़ा है, जिसमें पत्नी सावित्री अपने तप, प्रेम और संकल्प के बल पर यमराज से अपने पति सत्यवान को पुनः जीवन दिलवाती हैं। यही कारण है कि यह पर्व भारतीय समाज में नारी के सतीत्व, शक्ति और त्याग की प्रतीक बन गया है।

इस व्रत में महिलाएं बरगद के पेड़ (वटवृक्ष) की पूजा करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस वृक्ष में त्रिदेवों का वास होता है—जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में शिव। इसी वृक्ष की छांव में सावित्री ने अपने मृत पति के प्राणों की रक्षा की थी। इसलिए वटवृक्ष को पूजनीय माना जाता है और इसकी परिक्रमा कर रक्षा-सूत्र बांधा जाता है।

कब है व्रत?

हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि इस बार 26 मई 2025 (सोमवार) को है।

  • अमावस्या तिथि प्रारंभ: 26 मई को दोपहर 12:11 बजे
  • अमावस्या तिथि समाप्त: 27 मई को सुबह 08:31 बजे

व्रत और पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय 26 मई की संध्या तक रहेगा।

पूजन विधि और सामग्री

सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और संकल्प लें। पूजा स्थल पर वटवृक्ष की शाखा या चित्र स्थापित करें (यदि वटवृक्ष उपलब्ध न हो) और देवी सावित्री का ध्यान करते हुए विधिपूर्वक पूजन करें।

आवश्यक पूजन सामग्री:

  • पीली या लाल चुनरी
  • सिंदूर, हल्दी, कुमकुम
  • चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी
  • फूल-माला, फल, मिठाई
  • जल से भरा कलश
  • सुपारी, पान, लौंग-इलायची
  • कच्चा सूत (या रक्षा सूत्र/कलावा)
  • कथा पुस्तिका (सावित्री सत्यवान व्रत कथा)

पूजन के दौरान व्रती महिलाएं वटवृक्ष की 7, 11 या 21 बार परिक्रमा करती हैं और हर फेरे के साथ रक्षा सूत्र बांधती हैं। इस परिक्रमा के साथ सावित्री-सत्यवान की कथा का श्रवण किया जाता है।


🌿 सावित्री-सत्यवान व्रत कथा

प्राचीन काल में राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और तेजस्विनी थी। विवाह योग्य होने पर उसने स्वयंवर में सत्यवान को पति के रूप में चुना, जो वन में रहने वाला एक तपस्वी राजकुमार था। नारद मुनि ने चेतावनी दी कि सत्यवान अल्पायु है, फिर भी सावित्री ने निश्चय नहीं बदला।

सावित्री ने विवाह के पश्चात अपने पति के साथ वनवास स्वीकार किया। एक दिन सत्यवान जंगल में लकड़ी काटते समय मूर्छित हो गए और वहीं उनका प्राणांत हो गया। यमराज उनके प्राण हरने आए, तब सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी।

यमराज ने बार-बार उसे लौटने को कहा, लेकिन सावित्री ने धर्म, ज्ञान और बुद्धि से उन्हें प्रभावित किया। यमराज ने उसे वर देने का वचन दिया। सावित्री ने पहले अपने सास-ससुर की नेत्रज्योति, फिर पुत्रवती होने का वर मांगा। यमराज ने उसे वरदान दे दिया, पर जब सावित्री ने कहा कि पुत्र तो सत्यवान से ही चाहिए, तब यमराज को सत्यवान को लौटाना पड़ा।

इस प्रकार सावित्री ने अपने दृढ़ निश्चय, भक्ति और प्रेम के बल पर अपने पति को मृत्यु से वापस पा लिया।


सामाजिक और पर्यावरणीय संदेश

यह पर्व महिलाओं के दृढ़ संकल्प, समर्पण और परिवार के प्रति उत्तरदायित्व का प्रतीक तो है ही, साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। वटवृक्ष जैसे लंबे जीवन वाले वृक्षों का पूजन कर समाज को वृक्षारोपण और प्रकृति के संरक्षण की प्रेरणा मिलती है।

कहां-कहां होता है आयोजन?

उत्तर भारत के राज्यों—मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ आदि में वट सावित्री व्रत बड़े आयोजन के रूप में मनाया जाता है। विशेषकर गांवों और कस्बों में महिलाएं समूहों में व्रत कथा करती हैं, गीत गाती हैं और वटवृक्ष की सामूहिक पूजा करती हैं।

आस्था का पर्व

वट सावित्री व्रत सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय नारी की आस्था, तप, शक्ति और प्रेम का उत्सव है। यह दिन महिलाओं को उनके पारंपरिक मूल्य और आत्मबल का स्मरण कराता है।




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