3 दिसंबर को होगी अहम सुनवाई, 16 राज्यों ने अब तक दाखिल नहीं किए जवाब — दवाओं की गुणवत्ता पर चिंता बरकरार
नई दिल्ली। देश में एचआईवी संक्रमित रोगियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जा रही एंटी-रेट्रोवायरल (एआरवी) थेरेपी दवाओं की गुणवत्ता और आपूर्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। अदालत ने मंगलवार को कहा कि वह इस संबंध में दाखिल याचिका पर 3 दिसंबर को सुनवाई करेगी। यह मामला वर्ष 2022 में ‘नेटवर्क ऑफ पीपल लिविंग विद एचआईवी/एड्स’ नामक एनजीओ और अन्य संगठनों द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें दवाओं की गुणवत्ता, आपूर्ति में कमी और वितरण प्रणाली में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाए गए थे।
16 राज्यों ने अब तक नहीं दिए हलफनामे
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की दो सदस्यीय पीठ को सूचित किया गया कि पिछले वर्ष सितंबर में याचिकाकर्ताओं के हलफनामे पर देश के 16 राज्यों ने अब तक अपने जवाब दाखिल नहीं किए हैं। सीनियर अधिवक्ता आनंद ग्रोवर, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने अदालत से कहा कि यह मामला एचआईवी रोगियों के जीवन और उपचार से जुड़ा अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है। उन्होंने यह भी कहा कि जिन राज्यों ने अब तक जवाब दाखिल नहीं किया है, उनकी चुप्पी गंभीर लापरवाही को दर्शाती है। इस पर पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा “अगर राज्य हलफनामे दाखिल नहीं कर रहे हैं, तो हम यह मामला अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। जो राज्य जवाब देना चाहते हैं, वे अब अपना पक्ष प्रस्तुत करें।”
केंद्र और कुछ राज्यों ने पहले ही दिए अपने जवाब
केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों की ओर से पेश वकीलों ने अदालत को बताया कि उन्होंने पहले ही अपने-अपने हलफनामे दाखिल कर दिए हैं। अदालत ने बताया कि फरवरी 2024 में राज्यों को एक महीने के भीतर जवाब देने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन अधिकांश राज्यों ने इस आदेश की अनदेखी की।
दवाओं की खरीद प्रक्रिया और गुणवत्ता पर उठे प्रश्न
याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष यह भी तर्क दिया कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP) के अंतर्गत एचआईवी रोगियों को मुफ्त दवाएं तो उपलब्ध कराई जा रही हैं, लेकिन इन दवाओं की गुणवत्ता और खरीद प्रक्रिया को लेकर गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं। वकील आनंद ग्रोवर ने बताया कि दवाओं की गुणवत्ता में असमानता, देरी से आपूर्ति, और कई बार स्टॉक खत्म होने की समस्या ने एचआईवी संक्रमित मरीजों को असुरक्षित बना दिया है। उन्होंने कहा कि दवाओं की प्रभावशीलता और स्टोरेज मानकों की नियमित जांच के अभाव में रोगियों के जीवन पर खतरा बढ़ रहा है।
केंद्र ने दी थी दवाओं की उपलब्धता की जानकारी
केंद्र सरकार ने जुलाई 2023 में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP) के तहत देश के सभी एआरवी-थेरेपी केंद्रों में एचआईवी से पीड़ित लोगों को मुफ्त और आजीवन एआरवी दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। केंद्र का दावा है कि वर्तमान में देश में एआरवी दवाओं की कोई कमी नहीं है, और वितरण प्रणाली को और मजबूत बनाया गया है। हालांकि, याचिकाकर्ता पक्ष का कहना है कि भले ही दवाएं अब पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों, लेकिन उनकी गुणवत्ता और प्रभावशीलता पर निगरानी की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, राज्यों को चेतावनी
पीठ ने राज्यों को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर अगली सुनवाई तक जवाब दाखिल नहीं किए गए, तो अदालत स्वयं आवश्यक निर्देश जारी करेगी। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि वह इस मामले में केंद्र सरकार से एक व्यापक स्थिति रिपोर्ट (Status Report) पेश करने को कह सकती है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला न केवल एचआईवी रोगियों के लिए बल्कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की पारदर्शिता के लिए भी एक मिसाल साबित हो सकता है।
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