राष्ट्रपति भवन में हुआ शपथ ग्रहण, सात देशों के मुख्य न्यायाधीश बने गवाह
नई दिल्ली। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में सोमवार का दिन एक विशेष दिन के रूप में दर्ज हो गया, जब जस्टिस सूर्यकांत ने देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ दिलाई। यह क्षण न केवल न्यायपालिका के लिए महत्वपूर्ण रहा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे अभूतपूर्व माना गया, क्योंकि पहली बार इतने बड़े स्तर पर विदेशों से आए न्यायिक प्रतिनिधि एक सीजेआई के शपथ ग्रहण में शामिल हुए। शपथ ग्रहण के तुरंत बाद जस्टिस सूर्यकांत ने मंच से उतरकर अपने बड़े भाई के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया। परिवार के सदस्यों की मौजूदगी ने इस समारोह को और अधिक भावनात्मक बना दिया। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई प्रमुख व्यक्तियों से मिलकर शुभकामनाएं प्राप्त कीं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल की पहली बार मौजूदगी
इस समारोह की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि इसमें सात देशों—भूटान, केन्या, मलेशिया, मॉरिशस, नेपाल, श्रीलंका और ब्राजील—के मुख्य न्यायाधीश और उनके परिवार के सदस्य विशेष रूप से मौजूद रहे। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी मुख्य न्यायाधीश के शपथ ग्रहण के लिए इतने बड़े अंतरराष्ट्रीय न्यायिक प्रतिनिधिमंडल ने उपस्थिति दर्ज कराई हो। यह भारत की न्याय व्यवस्था की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा का संकेत माना जा रहा है। समारोह के बाद जस्टिस सूर्यकांत ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई से मिलकर उन्हें गले लगाया। गवई ने ही रविवार, 23 नवंबर को अपने कार्यकाल की समाप्ति के साथ पद छोड़ा था। जस्टिस सूर्यकांत का मुख्य न्यायाधीश के रूप में यह पदभार न्यायपालिका के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल रहेगा 14 महीने का
जस्टिस सूर्यकांत का मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल लगभग 14 महीने का होगा। वे 9 फरवरी 2027 को सेवानिवृत्त होंगे। इससे पहले वे देश की सर्वोच्च अदालत में कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई में निर्णायक भूमिका निभा चुके हैं। उनका न्यायिक कार्यकाल सरल भाषा, संवेदनशील दृष्टिकोण और न्याय के आधुनिक मानकों के अनुरूप निर्णयों के लिए जाना जाता है। न्यायपालिका और शासन से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले 14 महीनों में न्यायिक सुधारों, लंबित मामलों के निपटारे और न्याय वितरण प्रणाली के आधुनिकीकरण जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण फैसले देखने को मिल सकते हैं।
न्यायपालिका के लिए महत्वपूर्ण समय
प्रधान न्यायाधीश की कुर्सी संभालने के साथ ही जस्टिस सूर्यकांत पर कई संवेदनशील और राष्ट्रीय महत्व के मामलों की जिम्मेदारी भी आ गई है। उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब न्यायपालिका पर तेज और पारदर्शी न्याय प्रदान करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय न्यायिक प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने इस पद की गरिमा को और ऊंचा किया है, साथ ही यह संदेश भी दिया है कि भारत की न्याय व्यवस्था विश्व स्तर पर तेजी से प्रभावशाली बनती जा रही है। जस्टिस सूर्यकांत के नेतृत्व में न्यायपालिका से कई सकारात्मक पहल की उम्मीद की जा रही है। न्याय व्यवस्था में तकनीक के उपयोग तथा अदालतों की पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में उनके विचार पहले ही प्रशंसा पा चुके हैं।
/swadeshjyoti/media/agency_attachments/2025/11/09/2025-11-09t071157234z-logo-640-swadesh-jyoti-1-2025-11-09-12-41-56.png)
/swadeshjyoti/media/agency_attachments/2025/11/09/2025-11-09t071151025z-logo-640-swadesh-jyoti-1-2025-11-09-12-41-50.png)
/swadeshjyoti/media/media_files/2025/11/24/cji-2025-11-24-11-28-46.jpg)